Sunday, October 16, 2011

                गीत समय का
कुछ कहते हैं, कुछ करते हैं , किन्तु नहीं शर्माते लोग |
किसे  सुनायें गीत समय का, सत्य कहाँ सुन पाते लोग?

सकरी राहों पर चल कर के , जिनको मंजिल पानी है|
उनके लिए यहाँ पग-पग पर , उलझन है हैरानी है|| 
कमजोरों के विविध विरोधी , मुँह के कौर छिनाते लोग|
किसे सुनायें गीत समय का,सत्य कहाँ सुन पाते लोग?

शासक और प्रशासक दोनों, भुजबलियों से डरते हैं |
लूट-पाट, छीना-झपटी को, बेबस देखा करते हैं ||
धनहीनों को ठुकराते हैं , धनिकों से घबराते लोग |
किसे सुनायें गीत समय का,सत्य कहाँ सुन पाते लोग?

जाति-वर्ग मजहब भाषा ने, बाँट दिया इंसानों को |
क्षेत्रवाद की स्वार्थ वृत्ति ने, अपनाया शैतानों को ||
कुछ को उच्च यहाँ पर , कुछ को नीच बताते लोग|
किसे सुनायें गीत समय का सत्य कहाँ सुन पाते लोग?

भौतिकता की चकाचौध में, बुद्धि-विवेक को गया है|
मानव को अपने से ज्यादा, धन से प्यार हो गया है||
बिटियों का तो भ्रूण गिराते, बहुंयें यहाँ जलाते लोग |
किसे सुनायें गीत समय का,सत्य कहाँ सुन पाते लोग?

No comments:

Post a Comment