Sunday, October 2, 2011

धार्मिक विश्वास किंचित मात्र भी व्यक्तिवादी मान्यता से नहीं समझा जा सकता है, उसे समझने के लिये जीवन मूल्यों को ही आधार बनाया जा सकता है , जब जिज्ञासु व्यक्तिवादी हो जाता है तब वह भक्त हो जाता है और भक्त अपने ईष्ट में कोई कमी नहीं देख पाता जिसके कारण उसकी सत्य और ज्ञान की खोज दूषित हो जाती है और दूषित हो जाने के कारण व आपने लक्ष्य से ही भटक जाता जब कि मूल्य आधारित साधक निरंतर सत्य की खोज में साधनारत रहकर लक्ष्य के समीप पहुँचने में सफल हो जाता इसे ही मुक्ति कहा जाता है|

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