Tuesday, October 25, 2011

जाति- वर्ग का मीत नहीं हूँ, इंसानों का गीत हूँ |
बात विभाजन की जो करता,उस स्वर के विपरीत हूँ ||

यह दुनिया परिवार एक है,जिसमें सब इंसान हैं|
इनमें भेद डालने वाले, स्वार्थ पथी शैतान हैं|| 
चेतनता जो विकसित करता, वह प्रबोध संगीत हूँ|
बात विभाजन की जो करता,उस स्वर के विपरीत हूँ||

रूप-रँग भौगोलिक सीमा, राजनीति का खेल है |
सोच मजहबी समझ लीजिए, एक अँधेरी जेल है ||
धर्म-तंत्र के रक्त-पात का, भूला नहीं अतीत हूँ |
बात विभाजन की जो करता ,उस स्वर के विपरीत हूँ||

लोकतंत्रीय निर्मल वाणी, समता परक स्वाभाव है |
जिन पर करती जुल्म व्यवस्था,उनसे सहज लगाव है|
न्याय नीति मंथन से निकला, संवर्धक नवनीत हूँ |
बात विभाजन की जो करता ,उस स्वर के विपरीत हूँ||

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