Friday, October 14, 2011

सहस्रों साल तक जिसने, यहाँ पर मार खायी है|
उसी के राज करने की, व्यवस्था आज आई है ||

बिछाओं लाख शूलों को, उन्हें भी झेल वे लेंगे ,
जिन्होंने शीलवर्धन की, स्वतः सौगंध खाई है|
किसी की गंदगी ढोते, रहे जो सैकड़ों वर्षों ,
वही सब साफ कर लेंगे,जमीं जिस ठौर काई है|

तुम्हारी स्वार्थ सत्ता के,लिए निज रक्त पानी-सा,
बहाते ही रहे फिर भी, न पाई एक पाई है ||

सभी को ज्ञात है किस्सा,सुनायें और क्या किसको,
अभावों में मरी ताई , विलखती नित्य माई है |

उपेक्षित जो रहे अब तो , उन्होंने सीख ली भाषा,
'तुका' की ज़िन्दगी में ही, पढाई रंग लाई है ||

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