Friday, February 10, 2012

सोचता हूँ एक दिन संसार में,
ज़िन्दगी के सत्य को सब जान ही लेंगे|

आज हावी अर्थ की है कामना,
स्वार्थ ने सीखी सिखायी याचना,
हाथ में व्यापारियों के शक्ति है-
इसलिए ओझिल हुई सद्भावना|
शब्द सरि से न्याय की धारा बहे-
तो अनय के शमन हित रण ठान ही लेंगे|

साधना के मार्ग को जिसने चुना,
क्या उचित अनुचित सदा उसने गुना,
द्वेष की धारा रुकी रोके नहीं--
स्नेह सिंचित श्लोक तो सबने सुना|
मानवीयत को परखने के लिए-
है कसौटी आचरण सब मान ही लेंगे|

कौन-सी सर्वोदयी है सभ्यता,
भव्यता क्यों चाहती है नव्यता,
आप जो अपने बने आदर्श हैं-
लोग कहते उस चलन को सत्यता|
ज्ञान का दिनमान जो होगा उसे-
विश्व के इंसान खुद पहचान ही लेंगे|

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