Monday, February 27, 2012

वह भी मरघट भाँती है ,जिसमें मिले न स्नेह ।
तिनका-तिनका जोड़कर ,भले बना हो गेह ।।
थपकी दे झपकी उन्हें,कौन दिलाये आज ।
दादी -नानी की भली , लगे नहीं आवाज़ ।।
सुधियों की निधियां मिलीं,फिर भी मिले न चैन।
तड़प-तड़प कर दिन कटे,विलख-विलख कर रैन।।
मान लिया दूषित हुआ, शासन सहित समाज ।
क्या इसका यह अर्थ हैं,करें न जनहित काज ।।

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