Wednesday, February 29, 2012

स्वानुभूति कहने से पहले सत्यासत पहचानिये|
वक्त चाहता है कवियों से युग-आहत पहचानिये||

सोच-समझ की तर्क शक्ति से सर्जनात्मक बोध बढ़े,
काव्य-शिखर से बहती रसमय शिव ताकत पहचानिये|
क्या बटोरना यूरो -डालर स्वर्ण-रजत जग सम्पदा ,
चोर न जिसको चुरा सकें वो गुण-दौलत पहचानिये|

आदिकाल से पैर जकड़कर कैद किये जंजाल में,
मुक्त कर सके जो जीवन को वो हिकमत पहचानिये|

कौन जोड़-तोडों से मिलती कौन ईश वरदान से,
दान प्राप्त करने से पहले हर बरकत पहचानिये|

मान मर्तबा इंसानों -सा विश्व बीच मिल जायेगा,
उग्रवाद का शमन करे जो वो आदत पहचानिये |

एक वृक्ष के पत्तों जैसा जग मानव का वंश है,
नम्रभाव से तुका कह रहा नव भारत पहचानिये|

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