असरदार इतनी इबादत तुम्हारी|
तुम्हें मिल गई है विरासत तुम्हारी||
परख ली समझ ली शराफ़त तुम्हारी,
जहाँ को विदित है करामत तुम्हारी|
...
किया जाएगा नाम बदनाम वो भी,
अजी जो करेगा रफ़ाक़त तुम्हारी|
बताना नहीं चाहता हूँ किसी को,
हुई किसलिए हैं हिफ़ाज़त तुम्हारी|
दबे बोझ से जो यहाँ लोग उनको,
नहीं न्याय देती अदालत तुम्हारी|
बदल जाएगा रंग माहौल पल में,
अगर मैं सुना दूँ हमाक़त तुम्हारी|
सरस लोकशाही यहाँ आ चुकी है,
रही यह नहीं अब रियासत तुम्हारी|
नहीं डींग मारो कभी इस तरह से,
तुका से छिपी क्या हकीकत तुम्हारी?
No comments:
Post a Comment