Saturday, February 11, 2012


विदित नहीं  जिनको जीवन की,संवर्धक तस्वीर|
उन्हीं को  जकड़े  धन जंजीर||
उन्हीं को जकड़े  धन जंजीर|||
 
 
अर्थ व्यर्थ है नहीं बंधुओं,मगर न वह मानव का स्वामी|
सर्जनात्मक शक्ति उसी में,जो है सदाचरण अनुगामी ||
खींच रहे जो भेदभाव की ,कलुषित कपट लकीर |
उन्हीं को जकड़े  धन जंजीर||
उन्हीं को जकड़े  धन जंजीर|||
 
जिनकी दुनिया रंग रँगीली,वे क्या जाने प्रेम फकीरी|
सुविधाभोगी समुदायों को, बहुत सुहाती दादागीरी||
मज़लूमों को रहे समझते, जो अपनी जागीर|
उन्हीं को जकड़े  धन जंजीर||
उन्हीं को जकड़े  धन जंजीर|||
 
जिनकी राहें लंबी-चौड़ी, वे सकरी गलियाँ क्या जानें?
खुद को सभ्य समझने वाले,समझदार को क्यों पहचानें?
लूट-पाट करके जो खाते, मुर्ग-मुसल्लम खीर|
उन्हीं को जकड़े  धन जंजीर||
उन्हीं को जकड़े धन जंजीर|||
 

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