Sunday, January 6, 2013

एक कवि-कर्म आधारित राष्ट्रीय गीत:-

राष्ट्र -रक्षकों ने स्वदेश के,राजकोष को लूटा है|
अब ऐसा आभास हो रहा,कुम्भ धैर्य का फूटा है||

अधिकारों ने की मनचाही,कहीं उगाही कहीं तबाही,
लापरवाही भरी व्यवस्था,न्याय हितैषी दिखें न राही|
कदचारियों के प्रभुत्व से, संयम -संबल टूटा है | 
अब ऐसा आभास हो रहा,कुम्भ धैर्य का फूटा है||

युगबोधक कबीर-सा गायें,जनमानस भयहीन बनायें,
विप्लववादी संगठनों से, जूझ रहे इन्सान बचायें|
बगुला-भक्तों की प्रवृत्ति से,दूषण भोग न छूटा है|
अब ऐसा आभास हो रहा,कुम्भ धैर्य का फूटा है|| 

समझें नव पीढ़ी की वाणी,विलख रहे हैं व्याकुल प्राणी,
विषम परिस्थिति से उबारती,सदा रही कविता कल्याणी|
हर हालत में मित्र बचाना,भारत भवन अनूठा है|
अब ऐसा आभास हो रहा,कुम्भ धैर्य का फूटा है||

No comments:

Post a Comment