दिन को दिन कहना जीवन में,जिसे रहा स्वीकार|
उसी ने जिया सत्य व्यवहार||
उसी ने किया सत्य व्यवहार|||
मरुस्थलों को मैदानों को,शिखर वादियों तूफ़ानों को,
साम्य दृष्टि से रहा देखता,जो धरती के सब प्राणों को|
मौन पत्थरों के अंतर की, सुनता रहा पुकार|
उसी ने जिया सत्य व्यवहार||
उसी ने जिया सत्य व्यवहार|||
रात-रात भर जगा न सोया,चकाचौंध में कभी न खोया,
शोध हेतु जो शाधक जैसा, बना विवेकी ज्ञान संजोया|
पतझर को वासंती -सी दी, समरस सुखद बयार|
उसी ने जिया सत्य व्यवहार|
उसी ने जिया सत्य व्यवहार||
पर दुख में कर कभी न खींचे,शिवम पारखी नेत्र न मींचे,
वृक्ष लताएँ उर बागीचे,जीवन जल से अविरल सींचे |
बिका मुफ्त में सदा लुटाता, रहा सभी को प्यार |
उसी ने जिया सत्य व्यवहार||
उसी ने जिया सत्य व्यवहार|||
हरे चनों की हरियाली-सा,खिलती सरसों की डाली-सा,
पहली-फली फस्ल जब देखी,तब हँस पड़ा कृषक माली-सा|
जिसने पर उपकार हेतु निज, रक्त दिया उपहार|
उसी ने जिया सत्य व्यवहार||
उसी ने जिया सत्य व्यवहार|||
उसी ने जिया सत्य व्यवहार||
उसी ने किया सत्य व्यवहार|||
मरुस्थलों को मैदानों को,शिखर वादियों तूफ़ानों को,
साम्य दृष्टि से रहा देखता,जो धरती के सब प्राणों को|
मौन पत्थरों के अंतर की, सुनता रहा पुकार|
उसी ने जिया सत्य व्यवहार||
उसी ने जिया सत्य व्यवहार|||
रात-रात भर जगा न सोया,चकाचौंध में कभी न खोया,
शोध हेतु जो शाधक जैसा, बना विवेकी ज्ञान संजोया|
पतझर को वासंती -सी दी, समरस सुखद बयार|
उसी ने जिया सत्य व्यवहार|
उसी ने जिया सत्य व्यवहार||
पर दुख में कर कभी न खींचे,शिवम पारखी नेत्र न मींचे,
वृक्ष लताएँ उर बागीचे,जीवन जल से अविरल सींचे |
बिका मुफ्त में सदा लुटाता, रहा सभी को प्यार |
उसी ने जिया सत्य व्यवहार||
उसी ने जिया सत्य व्यवहार|||
हरे चनों की हरियाली-सा,खिलती सरसों की डाली-सा,
पहली-फली फस्ल जब देखी,तब हँस पड़ा कृषक माली-सा|
जिसने पर उपकार हेतु निज, रक्त दिया उपहार|
उसी ने जिया सत्य व्यवहार||
उसी ने जिया सत्य व्यवहार|||
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