Wednesday, January 30, 2013



वे गुलामी के सबालों से नहीं उबरे|
आदमी जो धर्म तालों से नहीं उबरे||

ख्याल तो प्रत्येक के चिंतन-मनन को है,
क्यों व्यवस्थापक कुचालों से नहीं उबरे?

पत्थरों को तोड़ जिनका स्वेद है बहता,
वे अभी तक दो निवालों से नहीं उबरे|

बैंक भी है ए.टी.एम भी गाँव नगरों में,
किन्तु धनवाले हवालों से नहीं उबरे|

भाइयों का साथ उनको रास क्यों आये,
सालियों के मीत सालों से नहीं उबरे|

शब्द से साहित्य का पीयूष लेने में ,
किस तरह हों दक्ष व्यालों से नहीं उबरे|

सज्जनों के पग तुका पहुँचें वहाँ कैसे,
राजनैतिक दल दलालों से नहीं उबरे|
     

No comments:

Post a Comment