वे गुलामी के सबालों
से नहीं उबरे|
आदमी जो धर्म तालों
से नहीं उबरे||
ख्याल तो प्रत्येक
के चिंतन-मनन को है,
क्यों
व्यवस्थापक कुचालों से नहीं उबरे?
पत्थरों को तोड़
जिनका स्वेद है बहता,
वे अभी तक दो निवालों
से नहीं उबरे|
बैंक भी है ए.टी.एम
भी गाँव नगरों में,
किन्तु धनवाले हवालों
से नहीं उबरे|
भाइयों का साथ
उनको रास क्यों आये,
सालियों के मीत
सालों से नहीं उबरे|
शब्द से
साहित्य का पीयूष लेने में ,
किस तरह हों दक्ष
व्यालों से नहीं उबरे|
सज्जनों के पग ‘तुका’ पहुँचें वहाँ कैसे,
राजनैतिक दल
दलालों से नहीं उबरे|
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