Tuesday, January 8, 2013


पड़ा मुखों पर क्यों ताला?

गली-गली में दहक रही है अनय जलाने को ज्वाला| 
आयातित भौतिक वैभव का पड़ा मुखों पर क्यों ताला?

लगता है अब सज्जन हारे,नायक ने हैं हाथ पसारे,
ज्ञानदानियों ने शिक्षा के,बंद कर दिये हैं सब द्वारे |
जनप्रतिनिधि दलप्रतिनिधि बनके लगे बदलने हैं पाला| 
आयातित भौतिक वैभव का पड़ा मुखों पर क्यों ताला?

त्यागो कभी न नैतिक दावा,आज समय है बोलो धावा,
किसको पता कि कब आ जाये,बिना बताये वक्त बुलावा|
मिलकर शीघ्र हटाना ही है,लगा कलंकित धब्बा काला|
आयातित भौतिक वैभव का पड़ा मुखों पर क्यों ताला?| 

डरने वाले तो डरते हैं,पर करने वाले करते हैं,
नदियों को अविरल नीर मिले,पर्वत से झरने झरते हैं|
जयघोष लगाती विजय खड़ी,लायी है जयवंती माला||
आयातित भौतिक वैभव का पड़ा मुखों पर क्यों ताला?

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