Monday, January 7, 2013


काव्य-प्रभा गिरते मूल्यों के,फिरसे चमन खिला देगी|
शब्द- साधना की रस धारा, मरते प्राण जिला देगी ||

अपने से जो बचे उसे तो, खुले हाथ देते रहना ,
सुलभ न जिनको भोजन-पानी,उनकी सुधि लेते रहना|
स्नेह भावना थके हुओं को,कर्मठ शक्ति दिला देगी |
शब्द- साधना की रस धारा, मरते प्राण जिला देगी ||

जो सबका स्वागत करता हो,उस पथ के ऊपर चलना,
मधुर फलों के तरुओं जैसा जगहित दुख सहकर फलना|
त्यागवृत्ति अमरत्व बोध का,मधु पीयूष पिला देगी |
शब्द- साधना की रस धारा, मरते प्राण जिला देगी ||

सुमनों हेतु न चाहत रखना,शूलों को सिचित करना,
जीवनदायक प्राणवायु की भाँति व्यथा चलकर हरना|
प्रीति रीति अरि अभ्यंतर के दूषित अचल हिला देगी|
शब्द- साधना की रस धारा, मरते प्राण जिला देगी ||

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