Thursday, January 31, 2013

अपने-अपने हितवर्धन के,ढोल पीटना राग बजाना|
इस माहौल बीच क्या संभव,मानवता के सूत्र सुनाना?

निराधार अफवाह उड़ाना,अपनी खिचड़ी अलग पकाना,
जिन्हें सुहाता बैर बढ़ाना,सब काले व्यापार चलाना |
उनसे कुछ कहना यों मानों,ज्यों लोहे के चने चबाना|
इस माहौल बीच क्या संभव,मानवता के सूत्र सुनाना?

जिन्हें पेट की आग बुझाना,क्या मुश्किल उनको बहकाना?
ठग क्या जाने, क्या होता है,अपनी नज़रों में गिर जाना?
ठगुओं हेतु न्याय है यों ज्यों, गप से हलुवा- पूरी खाना |
इस माहौल बीच क्या संभव,मानवता के सूत्र सुनाना?

मर्यादा का ताना- बाना, इतना कसकर है उलझाना,
सुलझाने से सुलझ न पाये,क्योंकि उन्हें है रक्त बहाना|
आगे नाथ न पीछे पगहा,किनसे नैतिक धर्म निभाना?
इस माहौल बीच क्या संभव,मानवता के सूत्र सुनाना?

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