Tuesday, July 3, 2012

कल थे गुरवार सकल विश्व के, आज गई मति मारी|
आओ! करें विचार बन गये, क्यों हम लोग भिखारी?

नागरिकों की आँख सदा,क्यों,सत्ता ओर निहारे?
खड़े हुये है लिए कटोरा, क्यों विदेश के द्वारे?
किस कारण कर फैलाने की,आयी विपदा भारी|
आओ! करें विचार बन गये, क्यों हम लोग भिखारी?

किस कारण से सीखी चोरी,कैसे सीना जोरी?
क्यों कहते कुछ रही आज से,अच्छी सत्ता गोरी?
भयाक्रांत रहती किस भय से,अपनी जनता प्यारी?
आओ! करें विचार बन गये, क्यों हम लोग भिखारी?

क्यों दिखते हैं दोष न उनमें,जाति-धर्म के आगे?
क्यों फिरते कवि छलियों-बालियों पीछे भागे-भागे?
सच को सच कहने की अब क्यों,कवि ने हिम्मत हारी?
आओ! करें विचार बन गये, क्यों हम लोग भिखारी?

किस कारण से काव्य कर्म का,अनुशासन अपनाया?
मूल्य विहीन चरित्र किसी को, क्या कुछ भी दे पाया?
हर हालत में हमें जीतनी, होगी फिर से पारी |
आओ! करें विचार बन गये, क्यों हम लोग भिखारी?

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