हमने देखी बड़े-बड़ों के,उर की वह तस्वीर|
न जिसमें परहित किंचित पीर||
न जिसमें परहित किंचित पीर|||
कई मील से जिन भवनों की, सूरत दिखे चमकती|
उनके अंदर मानवता की, चाह न अल्प झलकती||
अपने और परायेपन की, वे तो बने नजीर|
न जिसमें परहित किंचित पीर||
न जिसमें परहित किंचित पीर|||
जितना भारत का आँगन है, प्रिय उदार मधुमासी|
उतना इसके निवासियों का, जीवन भोग विलासी||
अनाचार ने अर्जित की है,वह कुत्सित जागीर|
न जिसमें परहित किंचित पीर||
न जिसमें परहित किंचित पीर|||
लोकतंत्रीय जीवन पद्धिति, इनको नहीं सुहाती|
संविधान के परिपालन में, इनकी फटती छाती||
कदाचार ने पहनाया है, ऐसा ठगुआ चीर|
न जिसमें परहित किंचित पीर||
न जिसमें परहित किंचित पीर|||
न जिसमें परहित किंचित पीर||
न जिसमें परहित किंचित पीर|||
कई मील से जिन भवनों की, सूरत दिखे चमकती|
उनके अंदर मानवता की, चाह न अल्प झलकती||
अपने और परायेपन की, वे तो बने नजीर|
न जिसमें परहित किंचित पीर||
न जिसमें परहित किंचित पीर|||
जितना भारत का आँगन है, प्रिय उदार मधुमासी|
उतना इसके निवासियों का, जीवन भोग विलासी||
अनाचार ने अर्जित की है,वह कुत्सित जागीर|
न जिसमें परहित किंचित पीर||
न जिसमें परहित किंचित पीर|||
लोकतंत्रीय जीवन पद्धिति, इनको नहीं सुहाती|
संविधान के परिपालन में, इनकी फटती छाती||
कदाचार ने पहनाया है, ऐसा ठगुआ चीर|
न जिसमें परहित किंचित पीर||
न जिसमें परहित किंचित पीर|||
No comments:
Post a Comment