निज अनुभव के गीत सुनाओ, जन जीवन की बात कहो|
जीवन की शुचिता के हित में,जन गण मन की बात कहो||
वक्त आपके स्वागतार्थ अब,खड़ा हुआ है राहों में |
मित्रो ! आगे बढ़ो शान से, बाह डालकर बाहों में||
सुख-सुविधायें स्वतः मिलेंगी,कभी न धन की बात करो|
जीवन की शुचिता के हित में,जन गण मन की बात कहो||
यह भी अपने वह भी अपने, सबके पूरे हों सपने|
हम सब भारत के वासी हैं,अलग-अलग क्यों हों नपने?
अपने घर की चिंता छोड़ो ,हर आँगन की बात करो|
जीवन की शुचिता के हित में,जन गण मन की बात कहो||
कार्य तुम्हारे देख सलौने, कुछ साथी मिल जायेंगे|
थोड़ी-सी सेवा करने से ,वन-उपवन खिल जायेंगे||
जो सबको सन्मार्ग दिखाये,उस चिंतान की बात कहो |
जीवन की शुचिता के हित में,जन गण मन की बात कहो||
जीवन की शुचिता के हित में,जन गण मन की बात कहो||
वक्त आपके स्वागतार्थ अब,खड़ा हुआ है राहों में |
मित्रो ! आगे बढ़ो शान से, बाह डालकर बाहों में||
सुख-सुविधायें स्वतः मिलेंगी,कभी न धन की बात करो|
जीवन की शुचिता के हित में,जन गण मन की बात कहो||
यह भी अपने वह भी अपने, सबके पूरे हों सपने|
हम सब भारत के वासी हैं,अलग-अलग क्यों हों नपने?
अपने घर की चिंता छोड़ो ,हर आँगन की बात करो|
जीवन की शुचिता के हित में,जन गण मन की बात कहो||
कार्य तुम्हारे देख सलौने, कुछ साथी मिल जायेंगे|
थोड़ी-सी सेवा करने से ,वन-उपवन खिल जायेंगे||
जो सबको सन्मार्ग दिखाये,उस चिंतान की बात कहो |
जीवन की शुचिता के हित में,जन गण मन की बात कहो||
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