Tuesday, July 17, 2012

क्या होता है काव्य कर्म कवि कैसे बनते हैं|
जिनको हैं यह बोध कभी वे नहीं बहकते हैं||

जिसको जितनी सुवुधाओं के बीच गया पाला,
उतना वे अभाव में निज छाया से डरते हैं|

शीतल जल का दान मेघ नव जीवनार्थ देते,
लेकिन कभी-कभी उनसे भी उपल बरसते हैं|

जिनसे एक बूंद भी जल की कभी नहीं मिलती,
ऐसे बादल सिर पर आकर बहुत गरजते हैं|

उन्हें भला इन्सान कहें तो कहो मित्र कैसे,
पर पीड़ा को देख न जिनके अश्रु निकलते हैं|

जिनकी सत्ता से नजदीकी होती है जितनी,
जनता से वे  अक्सर उतनी दूरी रखते हैं|

शूलों में रह जो फूलों जैसा पलते खिलते,
'तुकराम' वे सकल सृष्टि में सदा महकते हैं|

No comments:

Post a Comment