Saturday, July 14, 2012

इधर से उधर से उठाकर लिखा हँ|
समझिये न चोरी बताकर लिखा है||

नयी रौशनी की नयी गीतिका को,
नियम ज़िन्दगी के निभाकर लिखा है|

सभी को हँसाना जिन्हें है सुहाया, 
उन्होंने हंसी को छिपाकर लिखा है|

मुहब्बत किसी को कहाँ चैन देती,
महबूब का दिल दुखाकर लिखा है| 

तुकाराम जैसा मिला नाम जिनको,
उन्होंने स्वयं को रुलाकर लिखा है|

No comments:

Post a Comment