Sunday, July 22, 2012


समा गई उर बीच करोडों,युवकों की तस्वीर|
हरेंगे जो जन मन की पीर||
हरेंगे जो जन मन की पीर|||

हुए जो जाति प्रथा से दूर,जिन्हें है समरसता मंजूर,
चुने हैं वैज्ञानिक दस्तूर,बन गये जो धरती के नूर|
अर्जित किये विवेक -शक्ति से,ज्ञानोदय जागीर|
हरेंगे जो जन मन की पीर||
हरेंगे जो जन मन की पीर|||

जिन्हें है भली भांति युगबोध,जिन्होंने किया सत्य हित शोध,
जगा सकते वे प्रगति प्रबोध,कि जिनकी वाणी सरस सुबोध|
वही बहाने को निकले हैं,सौरभ शील समीर |
हरेंगे जो जन मन की पीर||
हरेंगे जो जन मन की पीर|||

चल पड़े हिलमिलकर हमराज.बजायें परिवर्धन के साज, 
अनोखा इनका है अंदाज,उठाते सर्जन की आवाज़ |
इनके गीत सजीले यूँ ज्यों, गाते संत कबीर| 
हरेंगे जो जन मन की पीर||
हरेंगे जो जन मन की पीर|||

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