Sunday, March 4, 2012

इतने उदास क्यों हो जरा मुस्कराइए जनाब?
दृग देख जो रहे हैं उसे गुनगुनाइए जनाब।।
तुझ में परेश में क्या कहीं मानते विभेद लोग,
यदि तू यहाँ न होता वहां वो बताइए जनाब ?
जग में मनुष्य भूखे अभी हैं प्रिये! कई करोड़,
उनकी महानता को कदापि न छिपाइए जनाब।
कितनी ख़राब होगी दशा खूब कीजिये विचार,
फिर एक और रैली विशाल बुलवाइए जनाब।
इतने बड़े बने थे खड़े पारसा समाज बीच,
फिर क्यों न पारसाई जरा-सी दिखाइये जनाब?
हिन्दू मुसलमान बौद्ध ईसाई बहाई सिंख,
पहले स्वतः शरीफ इंसान बन जाइए जनाब।
हँसते हुए 'तुका' के सिवा नफरती विषाक्त घूट,
जिसने पिए उसे तो कंठ से लगाइए जनाब। 
   
 

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