समाज में अशांति है, अपार लूटमार है|
विकास ढोल बज रहे, सुधार है सुधार है||
जिन्हें समाजवाद पर, असीम ऐतवार है|
उन्हीं सुबंधु के यहाँ, स्याह धन अपार है ||
किसी गुनाहगार को, न खौफ़ है विधान का,
सुना गया कि न्यायपालिका पनाहगार है|
महान लोकतंत्र के, महान लोकशाह भी,
जुबान खोलते नहीं, धनेश से करार है|
स्वतंत्र आँख खोलिए, निहारिए विचारिये,
कि क्यों गरीब आदमी, अमीर का शिकार है ?
'तुका' गरीब गाँव पर, प्रकोप है उजाड़ का,
मगर सफेदपोश के, यहाँ सदा बहार है|
No comments:
Post a Comment