Saturday, March 17, 2012

टूटे हुए बान को कसकर, रख न सके अदवान|
उसी चरपैया के अरमान|
निरक्षर लगे बड़े विद्वान||

लालच किंचित रहा न धन का, बहे पसीना श्रम से तन का,
... घास-फूस के उस छप्पर में,अति अमीर जन निकला मन का|
कवि को देख लगा मुस्काने, वह विनम्र इंसान|
उसी चरपैया के अरमान|
निरक्षर लगे बड़े विद्वान||

वातावरण बन गाया न्यारा,आगंतुक हर लगता प्यारा,
पलक झपकते इंसानों से,छप्पर भरा ठसाठस सारा|
सब ग्रामीणों से हँस-हँसकर, हुई सुखद पहचान|
उसी चरपैया के अरमान|
निरक्षर लगे बड़े विद्वान||

निज अभ्यंतर करके खाली,कविता सुनें बजायें ताली,
कवि को यों अनुभूति ज्यों,यही करें भारत रखवाली |
इनके दम से प्रगति इन्हीं से ,हरियाली अभियान|
उसी चरपैया के अरमान|
निरक्षर लगे बड़े विद्वान||

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