Monday, March 26, 2012

कौन यहाँ अत्याचारी हैं,कौन यहाँ व्यभिचारी?
कौन लुटेरों के पोषक हैं,जाने जनता प्यारी?

रूप-रंग तो बदल लिया है,केवल खुद को सबल किया है,
भाषण अविरल विमल दिये है,पर न आचरण धवल जिया है|
अर्थ भारी थैली थामी है,बुद्धि गई सब मारी|
कौन यहाँ अत्याचारी हैं,कौन यहाँ व्यभिचारी?
कौन लुटेरों के पोषक हैं,जाने जनता प्यारी?

नफ़रत को फैलाने वाले,दो के बीस बनाने वाले,
खोटे सिक्कों की ताकत पर,रुतबा यहाँ दिखाने वाले|
क्रूर मिलावट खोर हज़ारों,कहलाते व्यापारी|
कौन यहाँ अत्याचारी हैं,कौन यहाँ व्यभिचारी?
कौन लुटेरों के पोषक हैं,जाने जनता प्यारी?

कई संगठित भ्रष्टाचारी,बन बैठे है धर्म पुजारी,
जन गण मन की अभिलाषा को,रौंद रहे हैं बारी-बारी|
विज्ञापित यूँ किये जा रहे, जैसे हों अवतारी|
कौन यहाँ अत्याचारी हैं,कौन यहाँ व्यभिचारी?
कौन लुटेरों के पोषक हैं,जाने जनता प्यारी?

गान गरीब किसान हमारे,आश्वासन के महज़ सहारे,
पैंसठ वर्ष बीतने पर भी,भूखे-प्यासे हारे-मारे| 
अधिकारी सत्ताधारी भी ,दिखलाते लाचारी|
कौन यहाँ अत्याचारी हैं,कौन यहाँ व्यभिचारी?
कौन लुटेरों के पोषक हैं,जाने जनता प्यारी?

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