Saturday, March 24, 2012

अस्सी वर्षों के गालों पर युवकों-सी लाली,
लेकिन कई करोड़ों बच्चों की खाली थाली|
यही है जुम्मेदारी,मलाई बारी-बारी||

शिक्षालय में ताले लटके,अस्पताल में रोगी भटके,
सरकारी दफ्तर में जनता,बिजली जैसे खाती झटके|
काले धन ने कर डाली है, सत्ता भी काली|
यही है जुम्मेदारी,मलाई बारी-बारी||

भाषण जितने प्यारे-प्यारे,प्रतिफल उतने खारे-खारे,
मतदाता मत देकर सिसकें,कहें न कुछ उलझन के मारे,
सूख रही है लोकतंत्र के,तरुवर की डाली| 
यही है जुम्मेदारी,मलाई बारी-बारी||

क्रूर व्यवस्था मानो सोती,गाँव गरीब किसानी रोती, 
जो न उठाने से उठता है,उस बोझे को महिला ढोती,
जनप्रतिनिधि दल प्रतिनिधियों-सी,करते रखवाली|
यही है जुम्मेदारी,मलाई बारी-बारी||

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