Saturday, March 17, 2012

पाँच दोहे :-
मानव त्यों सहता रहा,स्वर्ण शक्ति के घात|
ज्यों सूरज के ताप से,हिम गलता दिनरात||

विश्व हितैषी हो सके,उसी ह्रदय की सोच|
हानि-लाभ के गणित से,पड़े न जिसमें लोच||

किसे सुनायें गीतिका,न्याय-नीति के छंद|
अनाचार से आधुनिक,बुद्धि हो गई भ्रष्ट||

विद्द्या रूपी शक्ति का,परहित में उपयोग|
जो करते हैं वे 'तुका',नहीं भोगप्रिय लोग||

कैसी भौतिक बुद्धि है,कैसी उसकी सोच?
नोच-नोच के खा रही,नैतिकता की चोच||

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