Sunday, March 25, 2012


चौसठ वर्षों बाद कौन-सी रीति गई हैं शोधी,
भ्रष्टाचार बढ़ाने वाले भ्रष्टाचार विरोधी|
संत बनकर आये,मेह जैसा छाये||

लूट लिया भरपूर राष्ट्र को, मिलकर कई लुटेरों ने,
बाँट लिया है सब कुछ अबतो, चोर-चोर मौसेरों ने|
पोल खोलने वालों को ठग कहते हैं अवरोधी||
चौसठ वर्षों बाद कौन-सी रीति गई हैं शोधी,
भ्रष्टाचार बढ़ाने वाले भ्रष्टाचार विरोधी|
संत बनकर आये,मेह जैसा छाये||

कई पीढ़ियों हेतु भरा हैं,जिनके घर का हर कोना,
उनको भी आ गया देखिये, घड़ियालों जैसा रोना|
धन सेवी के सेवक कहते, जनसेवी हैं क्रोधी||
चौसठ वर्षों बाद कौन-सी रीति गई हैं शोधी,
भ्रष्टाचार बढ़ाने वाले भ्रष्टाचार विरोधी|
संत बनकर आये,मेह जैसा छाये||  

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